Friday, December 11, 2009

कुमार बिस्वास... कशी यात्रा

कोई दीवाना कहता है..कोई पागल समजता है..
मगर धरती की बैचेनी..को बस बादल समजता है...
तू मुझसे दूर कैसी है मैं तुजसे दूर कैसा हु,
यह मेरा दिल समजता है न तेरा दिल समजता है...


महोबत एक ऐसे रोग की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है..
यहाँ सब लोग कहते है की मेरे आँखों में आंसू है..
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है..

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नही पाया..
हवाओं के इशारो पर, मगर मैं बह नही पाया...
अधूरा अनसुना ही रह गया यह प्यार का किस्सा...
कभी तू सुन नही पार्यी कभी मैं कह नही पाया...

भ्रमर कोई कुमदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा...
अभी तक लोग सुनते थे किस्सा महोबत का...
मैं किस्से को हकीकत में बादल बैठा तो हंगामा...

समुन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता...
यह आंसू प्यार का मोती, इसे मैं खो नही सकता...
मेरी चाहत को तू दुल्हन बना लेना मगर सुनले..
जो मेरा हो नही पाया वोह तेरा हो नही सकता...

स्वयम से दूर हो तुम भी.... स्वयम से दूर है हम भी...
बड़े मशहूर हो तुम भी...बड़े मशहूर है हम भी..
बड़े मगरूर हो तुम भी... बड़े मगरूर हो तुम भी..
आतः बड़े मजबूर हो तुम भी.. बड़े मजबूर है हम भी...


2 comments:

  1. nice! didnot know you were into poetry..but of crse, I dont understand all parts too well

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  2. too good yaar,tum ne banai hai ya copy ki hai??

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